insan ki pahchan उसके अच्छे या बुरे अमल से होती है

मौज़ू बड़ा ही अहम है, और सीधा दिल से जुड़ा हुआ - बेहतरीन इंसान अपने आमाल से पहचाना जाता है, वरना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती हैं।

बेहतरीन इंसान अपने आमाल से पहचाना जाता है 

अल्हम्दुलिल्लाह ! हम अपने रब का शुकर अदा करते हैं जिसने हमें इस्लाम जैसी मुकम्मल और प्यारी दीन की दौलत से नवाज़ा। और सलात-ओ-सलाम हो हमारे आक़ा, सरवरे कायनात, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर, जिनकी ज़िन्दगी हम सब के लिए नमूना ए अमल है। 
मौज़ू बड़ा ही अहम है, और सीधा दिल से जुड़ा हुआ - बेहतरीन इंसान अपने आमाल से पहचाना जाता है, वरना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती हैं। 

अगर आमाल काले हैं

भाइयों और बहनों, बात ये है कि कह देना आसान होता है- मैं अच्छा हूँ, मैं नेक हूँ, मैं मुसलमान हूँ - लेकिन हक़ीक़त ये है कि इंसान की पहचान उसके लफ्ज़ों से नहीं, उसके आमाल से होती है। जुबान चाहे जितनी मीठी हो, अगर आमाल काले हैं, तो उसकी मिठास किसी काम की नहीं। 
कुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है: 
वमय्यअमल मिनस्सालिहाती मिन ज़करिन अव उनसा वहुवा मुमिनुन फ उलाइका यद खुलूनल जन्नह..
(सूरह अन-निसा: 124) 
और जो कुछ भले काम करेगा, मर्द हो या औरत, और हो मुसलमान, तो वोह जन्नत में दाखिल किए जाएंगे। 
यानी सिर्फ बातें करने से नहीं, बल्कि नेक आमाल करने से इनाम मिलेगा।

हुज़ूर की सीरत 

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरत मुबारक देखें के आपने जो इरशाद फरमाया उस पर अमल कर के भी दिखाया यानी अपने सहाबा को सिर्फ बातों से नहीं, बल्कि अपने किरदार से इस्लाम सिखाया। 
अज़ीज़ो, आज का दौर ऐसा हो गया है कि इंसान के लफ्ज़ कुछ और होते हैं, और किरदार कुछ और। सोशल मीडिया पर बातें बहुत ऊँची-ऊँची होती हैं- इंसानियत, सच्चाई, दीनदारी लेकिन जब हकीकत में देखो, तो वही शख्स धोखा दे रहा होता है, ग़ीबत कर रहा होता है, हक मार रहा होता है। 
ये दोरुखी रविश इस्लाम में नापसंद है। हज़रत अली करमल्लाहु वजहू फरमाते हैं: 
किसी के लिबास और बातें देख कर धोखा मत खाओ, इंसान का असली चेहरा उसके अमल में होता है।
कितनी गहरी बात है। आज लोग लिबास और लफ्ज़ों से अपनी अच्छी तस्वीर पेश करते हैं, लेकिन अंदर से खोखले होते हैं।
एक बार का वाक़िआ है - एक ताजिर था जो हमेशा बड़ी-बड़ी बातें करता था, मैं बड़ा सच्चा हूँ, अल्लाह वाला हूँ, लोगों की मदद करता हूँ। 
मगर जब एक गरीब मज़दूर ने उससे मज़दूरी माँगी तो उसने कहा, कल आना। 
फिर कल आया, फिर टाल दिया। जब ये मामला रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक पहुँचा, तो आपने सख्ती से फरमाया:
मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसका हक़ अदा करो।
(इब्न माजह) 
यानी सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होता, असल पहचान उस वक़्त होती है जब इंसान का किरदार बोलता है।

दूसरों को नसीहत लेकिन... 

आज अगर हम अपनी ज़िन्दगी का जायज़ा लें तो मालूम होगा कि हम में से बहुत से लोग दूसरों को तो नसीहत करते हैं, लेकिन खुद उस पर अमल नहीं करते। किसी को कहते हैं झूठ मत बोलो, और खुद झूठ बोलते हैं। किसी को कहते हैं नमाज़ पढ़ो, और खुद बिस्तर से उठने की तौफ़ीक़ नहीं होती। 
अल्लाह तआला कुरआन में फर्माता है: 
या अय्युहल्लज़ीना आमनू लिमा तकूलूना मा ला तफ़अलून। कबुरा मक्तन इंदल्लाहि अन तकूलू मा ला तफ़अलून।
(सूरह अस-सफ़: 2-3) 
ऐ ईमान वालों! तुम वो बातें क्यों कहते हो जो करते नहीं? अल्लाह के नज़दीक ये बहुत बड़ी नापसंदीदा बात है कि तुम वो कहो जो तुम करते नहीं। 
भाइयों, अल्लाह को हमारी बातें नहीं, हमारे आमाल चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि लोग हमें अच्छा कहें, इज्ज़त दें, तो पहले हमें खुद अपने किरदार को सँवारना होगा। 

अमल का असर 

आज दुनिया में बहुत से लोग हैं जो इस्लाम से दूर हैं, लेकिन जब किसी मुसलमान का किरदार अच्छा देखते हैं तो इस्लाम की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो सिर्फ किसी मुसलमान के अमल से मुतअस्सिर होकर मुसलमान बन गए।
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का मुसलमान होना खुद एक मिसाल है। जब उन्होंने अपनी बहन की जुबान पर कुरआन सुना, और उसकी नर्मी, किरदार और सच्चाई देखी, तो दिल पसीज गया और इस्लाम कबूल कर लिया। 
इसी तरह, अगर हम आज चाहते हैं कि इस्लाम का नाम रोशन हो, उम्मत की इज़्ज़त बढ़े, तो हमें सिर्फ बोलना नहीं, चलना होगा उस राह पर जो हम दूसरों को दिखा रहे हैं। 
हमारे घरों में बच्चे हमें देखते हैं, सिर्फ सुनते नहीं। अगर हम नमाज़ की बात करें लेकिन खुद नमाज़ ना पढ़ें, तो बच्चा कभी अमल नहीं करेगा। अगर हम दूसरों से अमानतदारी की उम्मीद करें लेकिन खुद मक्कारी करें, तो समाज में भरोसा कैसे बनेगा? 
सिर्फ अच्छी बातें करना काफी नहीं। दीवारों पर भी लिखा होता है, ईमान, इंसानियत, सफाई, अमन' मगर दीवारें अमल नहीं करतीं। इंसान को चाहिए कि वो उन बातों को अपनी ज़िन्दगी में ढाले। 
दुनिया में कामयाब वही लोग होते हैं जो अपनी बातों को अपने आमाल से साबित करते हैं। सहाबा किराम,औलियाअल्लाह, और हमारे बुजुर्ग - सब अपने आमाल से पहचाने गए।

अख़ीर में मैं यही अर्ज़ करूंगा: 

लफ्ज़ों की रोशनी अच्छी है, मगर किरदार की लौ उससे कहीं ज़्यादा ताक़तवर होती है।
दुआ है कि अल्लाह तआला हमें सिर्फ अच्छी बातें करने वाला नहीं, बल्कि अच्छे आमाल करने वाला इंसान बनाए, ताकि हम दीन को जुबान से नहीं, अपनी पूरी ज़िन्दगी से पेश करें।

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islami Aaina
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