बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है।
भाइयो और बहनो!
आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहां सोशल मीडिया एक अखाड़ा का मैदान बन चुका है। यह सिर्फ एक मज़े के लिए इस्तेमाल होने वाला प्लेटफॉर्म नहीं रहा, बल्कि अब यह सोच और नज़रिया बदलने का सबसे ताक़तवर टूल बन चुका है। आज सोशल मीडिया पर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ़ अफ़वाहें फैलाई जाती हैं, और न जानें कैसी कैसी ख़बरें फैलाई जाती हैं, और हमारी पहचान को गलत तरीके से पेश किया जाता है। सवाल यह है कि क्या हमें चुप बैठना चाहिए? नहीं! बल्कि हमें इस मैदान में उतरकर हक़ की आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। लेकिन कैसे? क्या सिर्फ़ गुस्से में जवाब देने से काम बनेगा? नहीं! हमें समझदारी से, इस्लामी तहज़ीब के साथ और दलीलों के ज़रिए जवाब देना होगा। आज हम बात करेंगे कि मुसलमान सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल कैसे करें? और इस्लाम के खिलाफ़ फैलाई गई अफ़वाहों का जवाब किस तरह दें?
ख़बरें कैसी फैलाई जाती हैं
1. सोशल मीडिया पर अफ़वाहें कैसे फैलाई जाती है?
भाइयो और बहनो! पहले ये समझना ज़रूरी है कि सोशल मीडिया पर अफ़वाहें कैसे फैलाई जाती हैं।
मनगढ़ंत खबरें - मुसलमानों को बदनाम करने के लिए झूठी खबरें फैलाई जाती हैं।
एडिट किए हुए वीडियो और तस्वीरें एक तस्वीर को काट-छांटकर उसे गलत मतलब देकर पेश किया जाता है।
मुसलमानों की गलत छवि दिखाना सोशल मीडिया पर बार-बार ऐसा कंटेंट पोस्ट किया जाता है, जिससे मुसलमानों को बुरा दिखाया जा सके।
फेक अकाउंट्स के ज़रिए नफ़रत फैलाना कुछ लोग नकली अकाउंट बनाकर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगलते हैं।
अब सवाल यह है कि इसका जवाब कैसे दिया जाए?
2. मुसलमान सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल कैसे करें?
(1) इल्म औडकीक (रिसर्च) के साथ जवाब दें
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि बिना इल्म के कोई भी जवाब देना नुकसानदेह हो सकता है।
कुरआन कहता है:
अगर कोई खबर तुम्हारे पास आए, तो पहले तहकीक कर लो।"
(सूरह अल-हुजरात अ:6)
अगर कोई झूठी खबर फैलाई जा रही है, तो बिना तहकीक उसे शेयर मत करें। पहले देखें कि क्या ये सच है या सिर्फ़ एक अफ़वाह?
अगर हमें जवाब देना है, तो सही तर्क (लॉजिक) और हकीकत के साथ दें।
(2) गुस्से में नहीं, अक्लमंदी से जवाब दें
कई बार होता यह है कि जब हम इस्लाम या मुसलमानों के खिलाफ कोई झूठी बात देखते हैं, तो गुस्से में आकर उल्टा सीधा बोल देते हैं। लेकिन क्या यही इस्लाम सिखाता है?
• हदीस में आता है:
"पहलवान वह नहीं जो लड़ाई में किसी को गिरा दे, बल्कि असली पहलवान वह है जो गुस्से के वक्त अपने आप को काबू में रखे।
(सहीह बुखारी)
सोशल मीडिया पर जब भी कोई इस्लाम के खिलाफ़ बोले, तो गुस्से से नहीं, बल्कि तर्क और तहजीब से जवाब दें।
अगर कोई कहे कि मुसलमान बुरे होते हैं, तो हम क्या करें?
• उन्हें बताएं कि कुरआन कहता है:
"जिसने एक बेगुनाह को मारा, उसने पूरी इंसानियत को मार डाला।"
(सूरह अल-माइदा अ:32)
अगर कोई कहे कि इस्लाम औरतों पर ज़ुल्म करता है?
उन्हें बताएं कि हज़रत ख़दीजा रदी अल्लाहु अन्हा एक ताजिरा (बिज़नेस वुमन) थीं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका बहुत एहतिराम किया।
(3) सोशल मीडिया पर इस्लाम की सही तालीमात फैलाएं
अगर लोग इस्लाम को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं, तो हमें इस्लाम की असली तस्वीर दुनिया के सामने रखनी होगी।
हमें पोस्ट और वीडियो के ज़रिए यह बताना चाहिए कि इस्लाम क्या सिखाता है: इस्लाम मोहब्बत और अमन का मज़हब है। इस्लाम इंसाफ़, बराबरी और भाईचारे की तालीम देता है। मुसलमानों ने दुनिया को इल्म, तहज़ीब और तरक्की दी है।
अगर मीडिया हमें बुरा दिखा रहा है, तो हमें सोशल मीडिया पर इस्लाम की खूबसूरती दिखानी होगी।
(4) अच्छे कंटेंट क्रिएटर्स को सपोर्ट करें
आज कई मुसलमान सोशल मीडिया पर इस्लाम की सही बात फैला रहे हैं। हमें ऐसे लोगों को सपोर्ट करना चाहिए, उनके वीडियो और पोस्ट शेयर करनी चाहिए।
अगर कोई यूट्यूबर या ब्लॉगर इस्लाम की सही तस्वीर दिखा रहा है, तो उसकी पोस्ट को शेयर करें।
अगर कोई मुसलमान इस्लामी तालीम पर वीडियो बना रहा है, तो उसे लाइक और सपोर्ट करें।
याद रखें! अगर हम हक़ की बात को आगे नहीं बढ़ाएँगे, तो लोग सिर्फ़ झूठ ही सुनेंगे।
(5) अफ़वाहें और झूठे दावे फैलाने वालों को बेनकाब करें
अगर कोई सोशल मीडिया पर झूठ फैला रहा है, तो हमें तहकीक के साथ उसे एक्सपोज़ (बेनकाब) करना चाहिए। अगर कोई सोशल मीडिया अकाउंट नफरत फैला रहा है, तो उसे रिपोर्ट करें। अगर किसी न्यूज़ चैनल ने मुसलमानों के खिलाफ झूठी रिपोर्ट दी है, तो उस पर सही जानकारी के साथ रौशनी डालें। याद रखें! झूठ तब तक चलता है, जब तक सच बोलने वाले खामोश रहते हैं।
3. नतीजा - सोशल मीडिया से मुसलमानों की गलत छवि बदल सकती है
भाइयो और बहनो! अगर हम सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करें, तो दुनिया की सोच बदल सकती है। अगर हम इस्लाम की सही तालीम पेश करें, तो लोग अफ़वाहों पर यक़ीन करना छोड़ देंगे। अगर हम झूठ का तर्क और तहजीब से जवाब दें, तो लोग खुद समझ जाएंगे कि इस्लाम अमन और मोहब्बत का मज़हब है।
तो आइए! आज से सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल करें, हक़ की आवाज़ उठाएँ, और इस्लाम की असली पहचान दुनिया के सामने लाएँ।
वाख़िरु दावाना अन्निल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन।