तिजारत में बरकत है halal rozi ka rasta

जिसने धोखा दिया, वो हम में से नहीं है। क्या आज हम अपनी दुकानों पर, अपने माल में, अपने मुआमलात में ये हदीस याद रखते हैं?

 

मुसलमानों को तिजारत क्यों करनी चाहिए 

अलहम्दुलिल्लाह, हम अल्लाह तआला का शुक्र अदा करते हैं, जिसने हमें इस्लाम की नेअमत अता फरमाई। और हम दरूद-ओ-सलाम पेश करते हैं हमारे आक्रा, रहमतुल्लिल आलमीन हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर, जिनकी ज़िन्दगी हम सब के लिए एक मुकम्मल नमूना है। 
अज़ीज़ों, आज हम एक बड़े अहम और ज़रूरी मोज़ू पर गुफ्तगू कर रहे हैं- तिजारत, यानी कारोबार। 
भाइयों और बहनों, इस्लाम ने तिजारत को ना सिर्फ़ जाइज़, बल्कि पसंदीदा ज़रिया-ए-रिज़्क करार दिया है। बहुत से लोग समझते हैं कि सिर्फ नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात ही इबादत हैं, लेकिन असल में, अगर दिल में नेक नीयत हो, और आमदनी हलाल हो, तो तिजारत भी इबादत बन जाती है। 

कुरआन करीम में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: 

"वअहलल्लाहुल बैअ व हर्रमर्रिबा" 
(सूरह अल-बतरह: 275) 
"अल्लाह ने तिजारत को हलाल और सूद को हराम किया। 
यानी अल्लाह तआला खुद फरमा रहा है कि तिजारत हलाल है, और ये एक मुबारक ज़रिया है अपने घर के लिए हलाल रोज़ी कमाने का। 
अब आइए हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी पर नज़र डालते हैं। हमारे प्यारे नबी खुद एक ताजिर थे। आपने हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का कारोबार सँभाला, दुश्मन भी आपको "अमीन" और "सादिक"  के लक़ब से। 
एक मर्तबा एक सहाबी ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लग से पूछाः या रसूलल्लाह। कौन सा पेशा सबसे बेहतर है?" 
तो आपने इरशाद फरमायाः 
"सबसे बेहतर कमाई वो है जो आदमी अपने हाथ से करे, और ताजिर जो सच्चा और भरोरोमंद हो, वो क़यामत के दिन अंबिया, सिद्दीकीन और शोहदा के साथ होगा। 
(तिर्मिज़ी) 
देखिए। कितना बड़ा रुतबा है एक सच्चे और ईमानदार ताजिर का! 
मगर अफ़सोस की बात ये है कि आज हम मुसलमानों ने तिजारत को छोड़ दिया, और दूसरों के मातहत नौकरी को अपना मक़सद बना लिया। जबकि हमारे बेशतर बुज़ुर्ग, सहाबा, तबिईन, ओलिया किराम-तिजारत किया करते थे। 
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु, जो तमाम सहाबा में सबसे आला मक़ाम रखते हैं, वो भी तिजारत करते थे। हज़रत अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु, जिनका नाम अमीरुत तुज्जार में लिया जाता है, वो इतने कामयाब ताजिर थे कि उन्होंने मदीना में आकर सब कुछ नया शुरू किया और जल्द ही बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया।

अब ज़रा दुनिया की मिसाल लें। 

आज के दौर में जो क़ौमें तरक्की कर रही हैं, उनका सबसे बड़ा ज़रिया तिजारत है। देख लीजिए जापान, चाइना, तुर्की, मलेशिया इन सब मुल्कों की तरक्की की बुनियाद तिजारत है। वहां के लोग चीज़ें बनाते हैं, बेचते हैं, एक्सपोर्ट करते हैं, ओर अपनी मआशियात को मज़बूत करते हैं। 
हम मुसलमान क्यों नहीं समझते कि तिजारत हमें ना सिर्फ रोज़ी देती है, बल्कि इज्ज़त, आज़ादी, और दूसरों की मदद करने का भी मौका देती है? एक अच्छा ताजिर नोकरी पेशा आदमी से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दे सकता है। वो ज़कात दे सकता है, सदक़ा दे सकता है, और उम्मत की मदद कर सकता है। 
लेकिन याद रखिए, तिजारत में बरकत तब आती है जब उसमें ईमानदारी हो, धोका न हो, झूठ न हो, और नाजाइज़ काम न हो। 

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 

"ताजिर जब झूठ बोलता है और धोखा देता है, तो अल्लाह की रहमत से दूर हो जाता है। 
(मुसनद अहमद)
आज बहुत से ताजिर मुसलमान है, लेकिन सच्चे कम है। तौल में कमी, झूठे दावे, हराम चीज़ों की बिक्री, सूद में मसरूफ़ रहना- ये सब उस बरकत को खा जाते हैं जो अल्लाह तिजारत में रखा है। 
हमें चाहिए कि हम कारोबार करें, लेकिन अपने नबी के उसूलों पर करें। तिजारत में नियत साफ़ हो, मुआमलात पाकीज़ा हौं, और इंसाफ़ हो।

 एक वाकिया

एक बार का वाक़िआ है कि एक सहाबी बाज़ार में खजूर बेच रहे थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लग वहां से गुज़रे और देखा कि ऊपर की खजूर ताज़ा है, लेकिन नीचे गीली हैं। आपने पूछा, "ये क्या है? 
उन्होंने कहा, "या रसूलुल्लाह, बारिश हो गई थी। 
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया 
"जिसने धोखा दिया, वो हम में से नहीं है। 
क्या आज हम अपनी दुकानों पर, अपने माल में, अपने मुआमलात में ये हदीस याद रखते हैं? 
भाइयों और बहनों, अब वक्त आ गया है कि हम मुसलमान दोबारा तिजारत की तरफ़ आएं। हमें चाहिए कि हम अपनी नस्लों को तिजारत की तरबियत दें। सिर्फ डिग्री लेकर नौकरी की तलाश ना करें, बल्कि हुनर सीखें, कारोबार शुरू करें, और उम्मत को मआशी तौर पर मज़बूत करें। 
हमारे नौजवानों को चाहिए कि वो टेक्नोलॉजी, डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन बिजनेस, हलाल इन्वेस्टमेंट इन सब में माहिर बनें। लेकिन साथ ही तिजारत के अदाब, हलाल-हराम की तालीम भी हासिल करें। 
अगर उम्मत के नोजवान तिजारत की राह पर आएं, और सच्चाई, अमानतदारी और अदल को अपना लें, तो यकीन मानिए, अल्लाह तआला हमारी रोजी में भी बरकत देगा, और उम्मत दोबारा इज्ज़त पाएगी। 

दुआ

अख़ीर में दुआ है कि अल्लाह तआला हमें हलाल तिजारत करने वाला बनाए, हमारी आमदनी में बरकत दे, और हमें उन ताजिरों में शामिल करे जो क़यामत के दिन अंबिया और सिद्दीकीन के साथ होंगे।

आमीन या रब्बल आलमीन 


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islami Aaina
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