आजकल ख़ूबसूरती की दुनिया इतनी तेज़ी से बदल रही है कि हर दूसरा दिन कोई नया ट्रेंड सामने आ जाता है। उन्हीं में से एक है आबरू की माइक्रोब्लेडिंग नन्हीं-नन्हीं सुइयों से नक़ली बाल बनाकर आबरू को मोटा और ख़ूबसूरत दिखाने का दावा किया जाता है। बहुत सी बहनें यह सोचकर इस काम की तरफ़ मुतवज्जे होती हैं कि इससे वह और भी हसीन नज़र आएंगी। लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि शरीअत इस बारे में क्या कहती है? क्या इस्लाम में यह हुस्न-ओ-जमाल बढ़ाने का तरीका जाइज़ है या कहीं यह हद से आगे बढ़ जाना तो नहीं? उलमा-ए-किराम साफ़ फ़रमाते हैं कि “अल्लाह की बनाई हुई शक्ल-ओ-सूरत में गैर-ज़रूरी तब्दीलियाँ करना शरअन नाजाइज़ और शैतानी कामों में शामिल है। तो फिर माइक्रोब्लेडिंग का शरई हुक्म क्या है? क्यों इसे टैटू (वश्म) की तरह हराम कहा जाता है? हदीस-ए-पाक में इस बारे में क्या लफ़्ज़ इस्तेमाल हुए हैं? और अगर किसी को असली ज़रूरत हो तो क्या वहाँ रुख़्सत मिल सकती है? इन्हीं सवालों का साफ़ और दलील के साथ जवाब आप इस ब्लॉग में बहुत ही आसान और प्यार भरे अंदाज़ में पढ़ेंगे… आइए! जानने की कोशिश करते हैं कि इस्लाम की नज़र में आबरू की माइक्रोब्लेडिंग जाइज़ है या ना जाइज़।
सीधा और साफ़ हुक्म
आबरू की माइक्रोब्लेडिंग क्योंकि टैटू की तरह सुई के ज़रिए जिल्द में रंग दाखिल कर के नक़्श बनाया जाता है इसलिए इस का शरई हुक्म भी टैटू की तरह नाजाइज़ व हराम है। यह अमल अल्लाह तआला की बनाई हुई शक्ल-ओ-सूरत में गैर शरई तब्दीली है और ऐसी तब्दीली कुरान करीम की रौ से शैतानी काम करार दी गई है। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऐसे काम करने वाली और करवाने वाली औरतों पर लानत फ़रमाई है। चुनांचे आबरू की माइक्रोब्लेडिंग शरअन ना जाइज़ व ममनूअ है।
हदीस पाक का सबूत और तफ़सील
हदीस पाक में है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
عَنَ اللهُ الْوَاشِمَاتِ وَالْمُتَنَمِّصَاتِ وَالْمُتَفَلِّجَاتِ لِلْحُسْنِ الْمُغَيِّرَاتِ خَلْقَ اللهِ अल्लाह तआला की लानत हो गोदने, गुदवाने वालियों, बाल उखाड़ने, और ख़ूबसूरती के लिए दांतों में खिड़कियां बनवाने वालियों, और अल्लाह की तख़्लीक़ में तब्दीली करने वालियों पर। (सहीह अल-बुख़ारी : 5943)
हदीस का खुलासा
वाशिमात" - यहां "वाशिमात" वश्म (गोदना/टैटू) की जमा है। यानी वह औरतें जो ख़ुद गोदती हैं या दूसरों को गुदवाती हैं।
वलमुतानम्मीसात" - यानी चेहरे के बाल नोचने वालियां, जिस में आबरू के बाल उखाड़ना भी शामिल है।
वल मुतफल्लिजात लिल्हुसने" - यानी ख़ूबसूरती के लिए दांतों के बीच फांक या खिड़की बनवाने वालियां।
अल मुगय्यराती खल्क़ल्लाह" - यह सबसे अहम हिस्सा है: "अल्लाह की तख़्लीक़ में तब्दीली करने वालियां। इस आख़िरी जुमले में पहले सभी अमल आ जाते हैं। हर वह काम जिस से अल्लाह की दी हुई अस्ली शक्ल में बदलाव किया जाए इस लानत में शामिल है।
माइक्रोब्लेडिंग क्यों इस में शामिल है?
इस का जवाब "उम्दतुल क़ारी" की तफ़सीर में मिलता है: उम्दतुल क़ारी में है "वाशिमात" वश्म की जमा है, यानी गोदना, और वह यह है कि औरत के हाथ की पुश्त, कलाई, होंठ या उस के अलावा किसी भी जगह सुई या नोकदार चीज़ फेर दी जाती है, यहां तक कि उस से ख़ून निकल जाता है, फिर उस जगह को सुरमा, पाउडर या नील से भर दिया जाता है। (उम्दतुल क़ारी, किताब तफ़सीर अल-कुरान, जिल्द: 13, सफ़ा: 388)
तफ़सीली तक़ाबुल
1. पारंपरिक गोदना (वश्म): सुई चुभो कर ज़ख़्म करना -> ख़ून निकलना -> ज़ख़्म में रंग भरना।
2. माइक्रोब्लेडिंग: माइक्रो-ब्लेड (नन्ही सुई) चुभो कर छोटे-छोटे ज़ख़्म करना -> ख़ून निकलना -> ज़ख़्म में पिगमेंट (रंग) भरना।
नतीजा: दोनों की तरीक़ा कारी बिल्कुल एक जैसी है। बस नाम अलग है, तकनीक थोड़ी मॉडर्न है, लेकिन अस्ल हकीक़त वही "वश्म" (गोदना) है जिस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने लानत फ़रमाई।
सवाल-जवाब और आम शुबहात
सवाल: लेकिन यह तो स्थाई नहीं होता, कुछ सालों में फीका पड़ जाता है?
जवाब: हुक्म लगाने में किसी चीज़ के "दाइमी" या "ग़ैर दाइमी" होने से फ़र्क़ नहीं पड़ता। हुक्म उस काम की हैसियत पर लगता है। यह अमल अल्लाह की तख़्लीक़ में तब्दीली है, इसलिए वह हराम है, चाहे वह एक महीने के लिए हो या दस साल के लिए।
समाज पर असर और हमारी ज़िम्मेदारी
हमारा समाज बाहरी ख़ूबसूरती के पीछे भाग रहा है। माइक्रोब्लेडिंग जैसे ट्रेंड्स औरतों को यह एहसास दिलाते हैं कि उनकी कुदरती शक्ल कमज़ोर है, उसे "ठीक" करवाने की ज़रूरत है। यह एक तरह का शैतानी वसवसा है जो इंसान को अल्लाह की दी हुई नेअमत से नाखुश कर देता है।
हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस तरह के हराम कामों से दूर रहें। और ख़ुद को बचाएं इसी तरह इस हराम काम से दूसरों को भी बचाएं नर्मी और हिकमत से अपनी बहनों,बेटियों और दोस्तों को शरई हुक्म समझाएं। अल्लाह ने हर इंसान को एक ख़ास ख़ूबसूरती और पहचान के साथ बनाया है। उसी पर रज़ा रखना और उसे अपनाना ही असली ईमान है।
ख़त्मे-कलाम
प्यारी बहनों और भाइयों, इस्लाम हमें हर मामले में एक बैलेंस और नेक रास्ता दिखाता है। यह हमारी ज़िंदगी के हर पहलू की हिफ़ाज़त करता है। आइए, हम अपनी ख़ूबसूरती को वैसे ही क़ुबूल करें जैसे अल्लाह ने हमें बनाया है। अल्लाह से दुआ है कि वह हम सबको शरई रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।
क्या आपके मन में इस मसले से जुड़ा कोई सवाल है? या आप किसी और इस्लामी मुद्दे पर जानकारी चाहते हैं? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं। हमारा यह मकसद है कि हम सब मिलकर अपने दीन की बेहतर समझ हासिल करें।
