आज का दौर माद्दियात का दौर है। हर शख्स दुनयावी तालीम को तर्जीह दे रहा है। हम अपने बच्चों को स्कूल में लाखों रुपए खर्च करके पढ़ाते हैं। सिर्फ इस लिए कि उन को अच्छी नौकरी मिल जाए। लेकिन क्या हम ने कभी सोचा कि आखिरत में क्या होगा?
हकीकत का एक जाएज़ा
अगर मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को नौकरी मिलती तो आज कोई भी माँ बाप अपने बच्चों को स्कूल में नहीं पढ़ाते। सब कहते कि "मेरा बच्चा दीन की पढ़ाई करे गा मेरा बच्चा आलिम बने गा। मगर आज कल की सूरते-हाल बिलकुल मुख्तलिफ है।
नीयत का मामला
ज़्यादा तर लोगों की नीयत में ख़लूस नहीं रहा। वह ज़ाहिर में तो कहते हैं कि "हम ने अपने बच्चों को दीनी तालीम दी है" मगर हकीकत में उन की नीयत नौकरी और रोज़गार हासिल करने की होती है। यह एक बहुत बड़ा अलमिया है।
दुनिया का रुजहान
आज ज़्यादा तर माँ बाप अपने तीन चार बच्चों को स्कूल में लाखों रुपए खर्च करके सिर्फ इस लिए पढ़ाते हैं कि उन को नौकरी मिल जाए। मदरसे में पढ़ाने की तो कोई सोचता भी नहीं। यह हमारी इज्तिमाई बद-किस्मती है।
असल हीरो कौन
हकीकी हीरो वह थोड़े से लोग हैं जो आखिरत की फिक्र करते हुए अपने बच्चों को दीनी तालीम दिलवाते हैं। उन का मकसद सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की रज़ा हासिल करना होता है। उन की सोच यह होती है कि "नौकरी मिले या न मिले, कम से कम आखिरत में इज्ज़त तो मिले गी।
आखिरत की कामयाबी
हमें समझ लेना चाहिए कि असल कामयाबी आखिरत की कामयाबी है। दुनिया की कामयाबी तो चंद रोज़ा है। नबी अकरम ﷺ ने फरमाया: "जब इंसान मर जाता है तो उस के तमाम आमाल कट जाते हैं सिवाए तीन चीज़ों के सदका जारिया मुफीद इल्म और नेक औलाद जो उस के लिए दुआ करती रहे।
अमली हल
आप के पास अगर दो तीन बेटे हैं तो किसी एक को आलिम ज़रूर बनाएं। यह आप की आखिरत की कामयाबी का ज़रीया बन सकता है। एक आलिमे दीन की वजह से पूरा खानदान आखिरत में निजात पा सकता है।
आखिरी बात
आइए हम अपनी नीयतें दुरुस्त करें। अपनी औलाद की तालीम व तर्बियत पर गौर करें। दुनिया के साथ साथ आखिरत को भी याद रखें। अपने बच्चों में से किसी एक को ज़रूर दीनी तालीम से आरास्ता करें।
अल्लाह तआला हमें सही फैसला करने की तौफीक अता फरमाए। हमें अपनी औलाद को दीन की खिदमत के लिए तैयार करने की हिम्मत अता फरमाए।
आमीन या रब्बल आलमीन
