दुनिया खतरनाक तेज़ रफ़्तार के साथ बदल रही है। तहज़ीबों की कशमकश मीडिया की यलग़ार और सोशल नेटवर्क की चमक-दमक ने हमारी नस्ल-ए-नौ के दिलो-दिमाग़ पर ऐसा दबाव डाला है कि हया इफ़्फत और पाकीज़गी जैसे अल्फ़ाज़ आहिस्ता-आहिस्ता पर्दों के पीछे धकेल दिए गए हैं। अफ़सोस कि इस दहकती दुनिया की तेज़ लपेट में मुस्लिम बच्चियां भी आ गईं और आज हमारे सामने एक सख़्त मसला "नाजायज़ तअल्लुक़ात का बढ़ जाना" मुंह फाड़े खड़ा है।
यह सिर्फ एक सामाजि ख़राबी नहीं। यह एक रूहानी सानिहा है उम्मत की बुनियादों में दराड़ डाल देने वाला ज़ल्ज़ला है। जब एक मुस्लिम बेटी अपनी इज़्ज़त पर पहरा न लगा सके तो समझ लीजिए कि घर का चिराग़ बुझने को है क़ौम की झोली में अंधेरे उतरने वाले हैं।
कहां से टूट रही हैं दीवारें
अख़लाक़ी तरबियत का कमज़ोर होना
घर वह पहला मदरसा है जहां मां की गोद में बच्ची हया सीखती है मगर आज मां मसरूफ़ बाप बे-ख़बर और घर तरबियत से ख़ाली होते जा रहे हैं। नतीजतन बच्चियां बाहर की दुनिया से अख़लाक़ नहीं फ़ितना सीखती हैं।
स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की यलग़ार
इस्क्रीन पर खुलने वाली चमकती झूठी दुनिया दिलों को बहका रही है। इंस्टाग्राम रील्स टेलीग्राम ग्रुप्स खुफ़िया चैट रूम्स तअल्लुक़ात की पहली चिंगारी अक्सर मोबाइल की इस छोटी सी इस्क्रीन से भड़कती है। वालिदेन जब बच्चों को फोन देते हैं दरअस्ल वह उनके साफ़ ज़हन में एक पूरा जंगल भी साथ थमा देते हैं।
मख्लूत माहौल और बे-पर्दगी
कॉलेज कोचिंग क्लासेज़ दफ़्तर और हत्ता कि मज़हबी तकरीरात तक में मख्लूत माहौल आम हो गया है। हया की दीवारें गिरने लगती हैं नज़र का तीर दिल को ज़ख़्मी करता है और तअल्लुक़ात का इक़्तिदा वहीं से हो जाता है।
फ़िल्म ड्रामा और वेब सीरीज़ का ज़हर
हर इस्क्रीन पर मुहब्बत इश्क़ दोस्ती बग़ावत और "अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी" का मुसलसिल प्रोपेगैंडा किया जा रहा है। यह माद्दा ज़हन में ऐसा फ़रेब जगाता है कि बच्ची को वालिदेन की नसीहतें सख्त और गुनाह की राहें आसान लगने लगती हैं।
शादियों में बिला-वजह ताख़ीर
महंगे जहेज़ ग़ैर-ज़रूरी रसूमात और वालिदेन की ग़ैर-हक़ीक़ी तवक्कुआत ने निकाह को मुश्किल बना दिया है। जब जायज़ रिश्ता मुश्किल हो जाए तो नाजायज़ रास्ते आसान लगने लगते हैं।
दीनी माहौल से दूरी
जब दिल में क़ुरआन की रौशनी न हो जब सीरत-ए-फ़ातिमा की खुशबू न हो जब दिल में नमाज़ का नूर न हो तब ख्वाहिशात का अंधेरा दिल पर कब्ज़ा कर लेता है।
नतीजे इस गुनाह के ज़ख़्म
नाजायज़ तअल्लुक़ात सिर्फ वक़्ती जज़्बाती ग़लती नहीं। यह इज़्ज़त की मौत खानदान की तबाही है। इसके नतीजे में:
बे-सुकूनी
घर के झगड़े
पढ़ाई व करदार में बिगाड़
ब्लैकमेलिंग
इज़्ज़त का नुकसान
ख़ुदकुशी तक की नौबत
यह शर्र सिर्फ फ़र्द को नहीं बल्कि पूरे खानदान को पिघला देता है।
इलाज रास्ता और रौशनी
यह मसला नया नहीं मगर इसका हल आज भी उसी ज़माने की रौशन हिदायात में है जिसने दुनिया को हया सिखाई थी।
घर में दीनी तरबियत की बहाली
मां-बाप वह चिराग़ जलाएं जो दिल को पाकी सिखाए।
नमाज़ की पाबंदी
सीरत-ए-सहाबियात का ज़िक्र
हया और इज़्ज़त की अहमियत
याद रहे: तरबियत सिर्फ जेबें नहीं भरती नस्लें बनाती है।
मोबाइल पर सख्त निगरानी और हुदूद
रात को फोन न दिया जाए
वालिदेन को मालूम हो कि बच्ची किससे बात कर रही है
सोशल मीडिया अकाउंट्स की निगरानी की जाए
यह बे-एतमादी नहीं; हिफ़ाज़त है।
हयादार माहौल की फराहमी
कोचिंग कॉलेज सफ़र तकरीरात—हर जगह हया का माहौल ज़रूरी है। बच्चियों के लिए फ़िल्टर्ड माहौल माहफूज़ रास्ते और पर्दे की सहूलियत वालिदेन की ज़िम्मेदारी है।
जल्द और सादा निकाह की तरग़ीब
निकाह को आसान बनाना ही इस्लाम का उसूल है। जब वालिदेन अपनी बेटियां का निकाह में बिला-वजह ताख़ीर करते हैं तो याद रखें: वक़्त जज़्बात को नहीं समझता और जज़्बात ग़लत रास्ते ढूंढ लेते हैं।
इस्लामी जुरअत और हौसला पैदा करना
बच्चियों को सिर्फ डराएं नहीं; समझाएं भी। उन में यह जुरअत पैदा करें कि "ग़लत दोस्ती" की दावत मिले तो "ना" कहने का हौसला हो तअल्लुक़ ख़त्म करने का हौसला हो घर वालों को बताने की हिम्मत हो।
दीनी माहौल से जोड़ना
मदरसा दर्स-ए-क़ुरआन, ख्वातीन के इज्तिमाआत सुन्नी इस्लाही माहौल यह दिलों के ज़ख़्मों का बेहतरीन मरहम हैं।
मुस्लिम बेटी क़ौम की इज़्ज़त है घर की हुरमत है और उम्मत की आंखों का नूर है। उसे गुनाह के अंधेरों में धकेल देना हमारा जुर्म भी है और ग़फ़लत भी।
आइए! अपनी बेटियों के दिलों में हया के चिराग़ दोबारा रौशन करें। उन्हें क़ुरआन की तालीम और रसूल-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाकीज़ा तालीमात सिखाएं उनके रास्ते रौशन करें और उन्हें गुनाहों के रास्ते से बचाएं।
यह लड़ाई सिर्फ बच्चियों की नहीं। यह पूरी उम्मत की इज़्ज़त की लड़ाई है। और हम सब को इस में अपना हिस्सा डालना होगा।
