कुरआन की तालीम अमन और शांति-islam aman aur shanti ka paigam deta hai


इस्लाम अमन और शांति का पैग़ाम 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है। 
भाइयो और बहनो! 
आज मैं जिस मुद्दे पर बात करने जा रहा हूँ, वो सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए अहम है। अक्सर इस्लाम के बारे में ग़लतफ़हमियाँ फैलाई जाती हैं। कहा जाता है कि इस्लाम तलवार का मज़हब है, ये लड़ाई-झगड़े को बढ़ावा देता है, ये अमन और शांति के ख़िलाफ़ है। लेकिन क्या वाक़ई ऐसा है? 
आज हम देखेंगे कि इस्लाम का असली पैग़ाम क्या है? क्या ये सच में अमन और शांति की तालीम देता है? क्या इस्लाम की बुनियाद मोहब्बत और भाईचारे पर रखी गई है? 
आईए, कुरआन, हदीस, इतिहास और दुनिया की मिसालों से इस हकीकत को समझते हैं। 

इस्लाम नाम ही अमन का पैग़ाम है 

सबसे पहली बात तो ये कि "इस्लाम" शब्द ही के मानी सलामती और शांति के हैं। 
"सलाम" का मतलब ही होता है शांति, सलामती, अमन। 
यही नहीं, जब मुसलमान आपस में मिलते हैं, तो क्या कहते हैं? 
"अस्सलामु अलैकुम" यानि "तुम पर सलामती हो"। 
अब सोचिए, जिस मज़हब की पहचान ही सलामती हो, वो कैसे अशांति फैला सकता है? 

कुरआन की तालीम अमन और शांति 

अगर कोई पूछे कि इस्लाम अमन का मज़हब है, तो सबसे पहले हमें कुरआन की तरफ़ देखना चाहिए। 
अल्लाह तआला फरमाता है 
"और अगर वह सुलह की तरफ़ झुके, तो तुम भी झुको और अल्लाह पर भरोसा रखो।
(सूरह अल-अनफाल अ:61) 
यानि अगर कोई सुलह करना चाहता है, तो इस्लाम कहता है कि लड़ाई मत करो, अमन को कुबूल करो। 
दूसरी जगह अल्लाह तआला फरमाता है 
"जिसने एक इंसान को क़त्ल किया, उसने पूरी इंसानियत को क़त्ल किया। और जिसने एक जान बचाई, उसने पूरी इंसानियत को बचा लिया।"(सूरह अल-मायदा अ32) 
अब सोचिए, अगर इस्लाम हिंसा और दहशतगर्दी सिखाता होता, तो क्या ये तालीम दी जाती? नहीं! इस्लाम तो हमें हर हाल में इंसानियत की हिफाज़त करने का हुक्म देता है। 

नबी-ए-करीम की ज़िंदगी अमन की सबसे बड़ी मिसाल 

अब अगर कोई पूछे कि इस्लाम अमन का मज़हब कैसे है, तो हमें सबसे पहले हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी को देखना चाहिए। 
1. ताइफ़ का वाक़िआ जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बदला नहीं लिया 
एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ताइफ़ गए, ताकि लोगों को इस्लाम की दावत दें। लेकिन वहाँ के लोगों ने उनके ऊपर पत्थर बरसाए, उन्हें लहूलुहान कर दिया। तभी जिब्रील (अलैहिस्सलाम) आए और बोले, 'या रसूलुल्लाह! अगर आप चाहें, तो अल्लाह इन लोगों पर पहाड़ गिरा देगा लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क्या किया? नहीं! मैं दुआ करता हूँ कि अल्लाह इन्हें हिदायत दे और इनकी नस्लों से नेक लोग पैदा करे। क्या यह अमन और शांति की सबसे बड़ी मिसाल नहीं? अगर इस्लाम हिंसा सिखाता, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसी वक़्त बदला ले सकते थे। 

इतिहास गवाह है - मुसलमानों ने हमेशा अमन को तरजीह दी 

अब अगर हम इतिहास देखें, तो हमें ऐसी कई मिसालें मिलेंगी, जहाँ मुसलमानों ने अमन और इंसाफ़ को अपनाया। 
1. मक्का की फ़तह बदला नहीं, माफ़ी दी जब मुसानों ने मक्का फ़तह किया, तो वहाँ के लोग डर गए कि अब उनके साथ बुरा सुलूक किया जाएगा। लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया आज तुम्हारे साथ वही होगा, जो यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अपने भाइयों के साथ किया था। जाओ, तुम सब आज़ाद हो! 
सोचिए! जिन लोगों ने सालों तक मुसलमानों पर ज़ुल्म किया था, नबी ने उन्हें माफ़ कर दिया। यही इस्लाम की तालीम है अमन, मोहब्बत और इंसाफ़। 
2. हज़रत उमर (रदी अल्लाहु अन्हु) की इंसाफ़ पसंदी 
जब हज़रत उमर (रदी अल्लाहु अन्हु) ने बैतुल मुक़द्दस फ़तह किया, तो वहाँ के ईसाई लोग डर गए थे कि अब उनके गिरजाघरों (चर्च) को तोड़ दिया जाएगा। लेकिन हज़रत उमर (रदी अल्लाहु अन्हु) ने खुद जाकर उनसे कहा, "तुम्हारी इबादतगाहों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएगा। उन्होंने ईसाइयों को पूरे हक़ और आज़ादी के साथ रहने दिया। क्या ये अमन और इंसाफ़ की बेहतरीन मिसाल नहीं?

आज के दौर में इस्लाम और अमन 

अब कुछ लोग कहते हैं कि अगर इस्लाम अमन का मज़हब है, तो आज मुसलमानों को लेकर इतनी बातें क्यों की जाती हैं? 
पहली बात - मीडिया का गलत प्रोपेगेंडा 
आज अगर एक मुसलमान गलती करे, तो पूरी दुनिया उसे 'आतंकी" कह देती है। लेकिन अगर कोई और ग़लती करे, तो उसे 'मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम" बताया जाता है। 
दूसरी बात - इस्लाम को ग़लत समझने की वजह 
आज लोग इस्लाम को किताबों से नहीं, बल्कि मीडिया और अफ़वाहों से समझते हैं। इसलिए ग़लतफ़हमियाँ फैलाई जाती हैं। 
तीसरी बात - मुसलमानों को अपनी पहचान खुद बनानी होगी 
अगर हमें दुनिया को इस्लाम की असली तस्वीर दिखानी है, तो हमें खुद अमन और मोहब्बत का नमूना बनना होगा। 

नतीजा - इस्लाम सच में अमन और शांति का मज़हब है 

भाइयो और बहनो! 
अगर कोई आपसे पूछे कि इस्लाम अमन का मज़हब है या नहीं, तो उसे ये बातें बताइएः 
इस्लाम का नाम ही "अमन" और "शांति" से जुड़ा है। 
कुरआन हमें अमन और इंसाफ़ सिखाता है। 
नबी-ए-करीम की पूरी ज़िन्दगी अमन और मोहब्बत से भरी हुई है। 
मुसलमानों का इतिहास गवाह है कि उन्होंने हमेशा इंसाफ़ किया। 
आज भी अगर इस्लाम की सही तालीम पर अमल किया जाए, तो दुनिया में शांति आ सकती है। 
अल्लाह हम सबको इस्लाम के असली पैग्राम को अपनाने और पूरी दुनिया तक पहुँचाने की तौफ़ीक़ दे। 
वाख़िरु दावाना अन्निल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन।

About the author

islami Aaina
यहां इस्लामी मकालात शेयर किए जाते हैं, हमारा मकसद इस्लाम का पैग़ाम, मोहब्बत, अमन और इन्साफ़, लोगों तक पहुँचाना है।

एक टिप्पणी भेजें