मुसलमान - रहम दिल और इंसाफ़ पसंद क़ौम
बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
भाइयो और बहनो! आज हम एक ऐसी सच्चाई पर बात करने जा रहे हैं, जो दुनिया में मुसलमानों की असली पहचान है 'रहमदिली और इंसाफ़। मुसलमानों को आज अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, कभी उन्हें शदीद (कट्टर) कहा जाता है, कभी ज़ालिम और कभी जिहा-दी। लेकिन क्या सच में ऐसा है? क्या इस्लाम किसी पर ज़ुल्म करने की तालीम देता है? क्या मुसलमानों की असली पहचान रहमदिली और इंसाफ़ नहीं?
आज हम कुरआन, हदीस, तारीख़ और दुनिया की मिसालों से साबित करेंगे कि मुसलमान हमेशा से रहमदिली और इंसाफ़ पसंद क़ौम रहे हैं।
इस्लाम - रहम और इंसाफ़ का मज़हब
इस्लाम की बुनियाद ही रहमदिली और इंसाफ़ पर रखी गई है। अल्लाह तआला फरमाता है
"हमने तुम्हें सारे जहां के लिए रहमत बनाकर भेजा।
(सूरह अल-अंबिया अ:107)
यानि नबी-ए-करीम पूरी इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए। वह सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि तमाम इंसानों, जानवरों, पेड़ों, पौधों, यहाँ तक कि पूरी कायनात के लिए रहमदिली और इंसाफ़ की मिसाल थे।
नबी-ए-करीम की रहमदिली
अगर कोई पूछे कि मुसलमान रहम दिल होते हैं, तो सबसे पहले हमें अपने प्यारे नबी की ज़िंदगी देखनी चाहिए।
ताइफ़ का वाक़िआ
जब ताइफ़ के लोगों ने नबी पर पत्थर बरसाए, उन्हें जख्मी कर दिया, उनका खून बहाया, तो फरिश्ता आकर बोला, "अगर आप कहें तो इन लोगों पर पहाड़ गिरा दूँ?
लेकिन हमारे नबी ने क्या जवाब दिया?
"नहीं! मैं दुआ करता हूँ कि अल्लाह इनकी नस्लों से ऐसे लोग पैदा करे जो इस्लाम को कुबूल करें।
क्या ये इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल नहीं? आज अगर कोई हम पर पत्थर फेंक दे, तो हमारा पहला रद्द-ए-अमल क्या होता है? लेकिन हमारे नबी ने बदला लेने के बजाय रहमदिली दिखाई।
मक्का की फ़तह इंसाफ़ और माफ़ी की बेहतरीन मिसाल
जब मुसलमानों ने मक्का फ़तह किया, तो सोचिए कि उस वक्त नबी उन तमाम लोगों से बदला ले सकते थे, जिन्होंने सालों तक मुसलमानों पर ज़ुल्म किए थे। लेकिन उन्होंने क्या किया? उन्होंने फरमाया "आज तुम्हारे साथ वैसा ही सलूक होगा, जैसा यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने भाईयों के साथ किया था। जाओ, सबको माफ़ किया! क्या ऐसी रहम दिली कहीं दिखा सकते हो? ये तो रहमदिली और इंसाफ़ की सबसे बड़ी मिसाल है।
मुसलमानों की इंसाफ़ पसंदी की मिसालें
अब आइए, मुसलमानों के इंसाफ़ की कुछ मिसालें देखें।
• हज़रत उमर (रदीअल्लाहु अन्हु) का इंसाफ़
हज़रत उमर फारूक़ (रदीअल्लाहु अन्हु) के दौर में एक यहूदी और मुसलमान के बीच झगड़ा हुआ। जब केस उनके सामने आया, तो उन्होंने हक़ की गवाही यहूदी के हक़ में दी, क्योंकि वही सही था।
सोचिए। आज हम में से कितने लोग ऐसे हैं, जो अपने दुश्मन के हक़ में भी इंसाफ़ कर सकते हैं? यही इस्लाम की सिखाई हुई सच्ची इंसाफ़ पसंदी है।
• सलाहुद्दीन अय्यूबी इंसाफ़ की पहचान
जब सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैतुल मुक़द्दस (जेरूसलम) फ़तह किया, तो उन्होंने ईसाइयों और यहूदियों को पूरी आज़ादी दी। जबकि जब ईसाइयों ने बैतुल मुक़द्दस फ़तह किया था, तो उन्होंने लाखों मुसलमानों को क़-त्ल कर दिया था। फिर भी मुसलमानों ने बदले में इंसाफ़ और रहमदिली का मुज़ाहिरा किया।
आज के दौर में मुसलमानों की रहमदिली
अब कुछ लोग कह सकते हैं कि यह तो पुरानी बातें हैं। लेकिन क्या आज के दौर में मुसलमान रहम दिल और इंसाफ़ पसंद नहीं हैं?
अगर हम देखें, तो दुनिया के सबसे ज़्यादा चैरिटी करने वाले लोग मुसलमान होते हैं।
ज़कात और सदक़ा
मुसलमान हर साल अरबों डॉलर की ज़कात देते हैं, जिससे गरीबों, बेसहारा लोगों, अनाथ बच्चों और मज़लूमों की मदद होती है।
कोरोना महामारी में मुसलमानों की मदद
जब कोरोना आया तो पूरी दुनिया के मुसलमानों ने इंसाफ़ और रहमदिली की मिसाल कायम की।
मस्जिदों को हॉस्पिटल में तब्दील कर दिया गया।
मुफ़्त ऑक्सीजन और दवाइयाँ बाँटी गईं।
बिना भेदभाव के हर मज़हब के लोगों की मदद की गई।
क्या ये किसी ज़ालिम क़ौम की निशानी होती है?
मुसलमानों के खिलाफ झूठा प्रोपेगेंडा क्यों?
अगर मुसलमान इतनी इंसाफ़ पसंद और रहम दिल क़ौम हैं, तो फिर उनके खिलाफ इतनी नफ़रत क्यों फैलाई जाती है?
ताकि मुसलमान अपने असली किरदार से भटक जाएँ।
ताकि उन्हें ग़लत ठहराकर दुनिया में अलग-थलग किया जाए।
ताकि वह तालीम, तरक्की और इंसाफ़ से दूर हो जाएँ।
लेकिन हमें समझना होगा कि दुनिया कुछ भी कहे, हमें कुरआन और सुन्नत के मुताबिक़ ही रहना है।
नतीजा - मुसलमानों को अपने असल किरदार पर वापस आना होगा
भाइयो और बहनो! मुसलमानों की असली पहचान रहमदिली और इंसाफ़ है। हमें अपनी इस पहचान को बरक़रार रखना होगा।
हमेशा इंसाफ़ करें, चाहे अपने खिलाफ़ ही क्यों न हो।
हर इंसान से भलाई और रहमदिली का बर्ताव करें।
दुश्मनों तक के साथ इन्साफ से पेश आएं।
अगर हम इस्लाम के असली तालीमात पर चलेंगे, तो दुनिया हमें फिर से इंसाफ़ और रहमदिली की क़ौम मानेगी।
वाख़िरु दावाना अन्निल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन।