क्या मुसलमान ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं-Islam ki nazar mein aulad ki ahmiyat


मुसलमानों पर ज़्यादा बच्चे पैदाकरने का इल्ज़ाम हक़ीक़त या अफ़वाह? 
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 
आज एक बड़ा अजीब और गैर-मुनासिब इल्ज़ाम मुसलमानों पर लगाया जाता है कि मुसलमान जानबूझकर ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं ताकि उनकी आबादी तेज़ी से बढ़े और वो दूसरों पर ग़ालिब आ जाएँ। 
यह इल्ज़ाम सिर्फ़ एक अफ़वाह ही नहीं, बल्कि मुसलमानों को बदनाम करने और उनके खिलाफ नफरत फैलाने का एक ज़रिया है। 
लेकिन क्या वाक़ई ऐसा है? क्या मुसलमानों की आबादी किसी ख़ास सा-ज़िश के तहत बढ़ रही है? क्या इस इल्ज़ाम में कोई सच्चाई है? और अगर मुसलमान ज़्यादा बच्चेपैदा कर रहे हैं, तो क्या यह कोई गुनाह है? आइए, इस मसले को समझने की कोशिश करते हैं। 

इस्लाम की नज़र में औलाद की अहमियत 

इस्लाम औलाद को अल्लाह की नेमत और रहमत क़रार देता है, न कि बोझ या कोई सा-ज़िश। कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता हैं: 
"माल और बेटे यह जीती दुनिया का सिंगार हैं..." 
(सूरह अल-कहफ़ अ:46) 
यानि औलाद इस दुनिया की खूबसूरती और अल्लाह का तोहफा है। इसी तरह, हदीस में आता है कि नबी-ए-करीम ने फरमायाः 
"शादी करो और औलाद पैदा करो, क्योंकि मैं क़यामत के दिन अपनी उम्मत की कसरत पर फख्र करूंगा।" 
(अबू दाऊद) 
इस हदीस से वाज़ेह होता है कि औलाद का ज़्यादा होना कोई बुरी बात नहीं, बल्कि एक नेमत है। 

क्या सिर्फ मुसलमान ज़्यादा बच्चेपैदा करते हैं? 

अब एक बहुत ही अहम सवाल यह है कि क्या वाक़ई सिर्फ मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़रही है? और क्या यह किसी सा-ज़िश के तहत हो रहा है? 
अगर मुसलमानों की बढ़ती आबादी सा-ज़िश होती, तो वो गरीब न होते! 
अगर कोई यह कहे कि मुसलमान सोच-समझकर ज़्यादा बच्चे पैदा कररहे हैं, तो फिर यह सवाल उठता है कि वही मुसलमान क्यों दुनिया में सबसे ज़्यादा गरीब और पिछड़े हुए हैं? अगर यह कोई ख़ास प्लानिंग होती, तो क्या मुसलमान आज भी तालीम, टेक्नोलॉजी और मआशी (आर्थिक) तौर पर सबसे पीछे होते? 

जनसंख्या वृद्धि सिर्फ मुसलमानों की नहीं! 

अगर आप दुनिया के तमाम देशों का डेटा देखें, तो जनसंख्या में इज़ाफ़ा सिर्फ मुसलमानों में नहीं हो रहा, बल्कि उन सभी समाजों में हो रहा है, जहाँ तालीम और मआशी हालात कमजोर हैं। अफ्रीका, भारत
और बांग्लादेश जैसे देशों में आबादी तेज़ी से बढ़रही है, जबकि यूरोप और जापान में घट रही है। 
इसका मतलब यह है कि आबादी बढ़ने का ताल्लुक़ किसी धर्म से नहीं, बल्कि मआशी और समाजी हालात से होता है। 

पश्चिमी दुनिया में घटती आबादी दोगला रवैया क्यों? 

अब आइए, इस मसले के दूसरे पहलू को देखें। 
 यूरोप में घटती जन्म दर पर कोई इल्ज़ाम नहीं! 
आज यूरोप और अमेरिका में लोग कम बच्चे पैदा कर,रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी आबादी लगातार घट रही है। वहाँ के हुक्मरान इस बात को लेकर परेशान हैं कि आने वाले सालों में उनके मुल्कों में नौजवान कम और बूढ़े ज़्यादा होंगे, जिससे उनकी मआशी हालत बिगड़ जाएगी। 

अगर मुसलमान कम बच्चे पैदाकरें तो? 

अगर मुसलमान भी यूरोप की तरह कम बच्चे पैदाकरें, तो वही लोग जो आज इल्ज़ाम लगाते हैं कि मुसलमान ज़्यादा बच्चेपैदा कर रहे हैं, वही फिर कहेंगे कि 'देखो! मुसलमान ख़त्म हो रहे हैं! 
यानि, मुसलमान कम बच्चे पैदा करें तो भी परेशानी, और ज़्यादा करें तो भी इल्ज़ाम! यह कैसा इंसाफ़ है? 
तारीख़ी हक़ीक़त - जब मुसलमान हुक्मरान थे 
अगर इस्लाम सच में यह कहता कि मुसलमानों को सिर्फ आबादी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, तो फिर अतीत में जब मुसलमानों की हुकूमत थी, तब उन्होंने तालीम, साइंस और तरक्की में इतनी मेहनत क्यों की? 
 बगदाद, अंदलुस और तुर्की की मिसालें 
जब बगदाद इल्म का मरकज़ था, जब अंदलुस (स्पेन) दुनिया का सबसे तालीमयाफ्ता इलाक़ा था, जब मुसलमान दुनिया भर में साइंस, मेडिसिन और इंजीनियरिंग में सबसे आगे थे तब मुसलमान सिर्फ बच्चे पैदा करने की नहीं, बल्कि इल्म और तरक्की की बात कर रहे थे। 

इस इल्ज़ाम का मक़सद क्या है? 

अब सवाल यह है कि आख़िर मुसलमानों पर यह इल्ज़ाम क्यों लगाया जाता है? इसका मक़सद बहुत साफ़ है: 
मुसलमानों को शर्मिंदा करना ताकि वो खुद अपने मज़हब और तालीमात से दूर हो जाएँ। 
 मुसलमानों में हीन भावना पैदा करना ताकि वो खुद को कमज़ोर और बेकार समझें। 
 मुसलमानों को तालीम से दूर रखना ताकि वो सिर्फ़ इस बहस में उलझे रहें और असल तरक्की से महरूम रहें। 
लेकिन मुसलमानों कोचाहिए के इस इल्ज़ाम के झांसे में न आएँ।

तो मुसलमानों को क्या करना चाहिए? 

अगर इस्लाम औलाद को अल्लाह की रहमत कहता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि मुसलमान सिर्फ़ बच्चे पैदाकरने में लगे रहें और तालीम, तरक्की और मआशी हालात को नज़रअंदाज़ कर दें। 
तालीम सबसे ज्यादा ज़रूरी है 
अगर मुसलमान चाहते हैं कि उनकी औलाद सच में उनके लिए फख़ का सबब बने, तो उन्हें तालीम और तरबियत पर ध्यान देना होगा। कुरआन कहता है: 
"क्या जानने वाले और न जानने वाले बराबर हो सकते हैं?" 
(सूरह अज़-जुमर अ:9) 
यानि इस्लाम में तालीम की इतनी अहमियत दी गई है कि बिना इल्म के कोई भी तरक्की नहीं कर सकता। 
मआशी हालत को बेहतर करें 
अगर मुसलमान अपने मआशी (आर्थिक) हालात को ठीक करेंगे, तो कोई भी उन पर यह इल्ज़ाम नहीं लगा सकेगा कि वो सिर्फ़ बच्चे पैदाकरने में लगे हुए हैं। 
नतीजा - हक़ीक़त को पहचानें 
मुसलमानों पर ज़्यादा बच्चे पैदाकरने का इल्ज़ाम सिर्फ एक झूठा प्रोपेगेंडा है। मुसलमानों,को चाहिए के वो इस बहस में उलझने के बजाय तालीम, मआश और समाजी तरक्की पर ध्यान दें। 
अल्लाह हमें सही समझ दे और हमें उन अफ़वाहों से बचाए जो हमें असल मक़सद से भटकाने के लिए फैलाई जाती हैं। 
वाख़िरु दावाना अनिल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन।

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islami Aaina
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