आज हम जिस मवज़ू पर बात करने जा रहे हैं, वह सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पूरी इनसानीयात के लिए अहम है। अक्सर इस्लाम के बारे में ग़लतफ़हमियाँ फैलायी जाती हैं। कहा जाता है कि इस्लाम तलवार का मज़हब है यह लड़ाई झगड़े को बढ़ाता है अमन व सलामती के ख़िलाफ़ है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? आइए क़ुरआन हदीस तारीख और इन्सानी मिसालों से समझते हैं कि इस्लाम का असल पैग़ाम क्या है और यह कैसे अमन व मोहब्बत की तालीम देता है।
इस्लाम अमन और सलामती का पैग़ाम
इस्लाम का मतलब ही अमन और सलामती है इस्लाम शब्द के मानी ही सलामती और अमन के हैं। सलाम का मतलब होता है अमन हिफाज़त और भलाई।
जब मुसलमान आपस में मिलते हैं तो कहते हैं अस्सलामु अलैकुम यानी तुम पर सलामती हो। सोचिए जिस मज़हब की पहचान ही सलामती हो वह कैसे फसाद फैला सकता है?
क़ुरआन की तालीम अमन और सलामती का पैग़ाम
क़ुरआन मजीद में अल्लाह तआला फरमाता हैं "और अगर वह सुलह की तरफ़ माइल हों तो तुम भी माइल हो जाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो" (सुरह अल-अनफ़ाल: 61)
यानि अगर कोई अमन चाहता है तो इस्लाम कहता है कि लड़ाई मत करो बल्कि सुलह को क़बूल करो।
दूसरी जगह फ़रमाया गया
जिसने एक इंसान को क़त्ल किया तो उसने पूरी इनसानीयात को क़त्ल किया, और जिस ने एक जान बचाई उसने पूरी इनसानीयात को बचा लिया" (सुरह अल-माइदा: 32)
क्या कोई ऐसा मज़हब जो इंसानी जान की हिफाज़त को पूरी इनसानीयात की निजात कहे, वह दहशतगर्दी सिखा सकता है? नहीं। इस्लाम तो हर हाल में इनसानियत और अमन की हिफ़ाज़त की तालीम देता है।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी अमन की सबसे बड़ी मिसाल
अगर कोई पूछे कि इस्लाम अमन का मज़हब कैसे है, तो हमें नबी करीम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िंदगी की तरफ़ देखना चाहिए।
ताइफ़ का वाकिया
जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ताइफ़ गए और वहाँ के लोगों ने आप पर पत्थर बरसाए यहाँ तक कि आप लहूलुहान हो गए, तो उस वक़्त फ़रिश्ता जिब्रील अ़लैहिस्सलाम आए और कहा: "अगर आप चाहें तो अल्लाह इन लोगों पर पहाड़ गिरा दे।
मगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: "नहीं, मैं दुआ करता हूँ कि अल्लाह इन्हें हिदायत दे और इनकी नस्लों से नेक लोग पैदा करें।
यह रहमत, सबर और इन्सानियत की बेहतरीन मिसाल है।
तारीख गवाह है मुसलमानों ने हमेशा अमन को तरजीह दी
फतह मक्का
जब मुसलमानों ने मक़्का फतह किया तो वहाँ के लोग ख़ौफ़ज़दा हुए कि अब उनके साथ इन्तिक़ाम लिया जाएगा।मगर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया आज तुम पर वही सलूक होगा जो यूसुफ़ अ़लैहिस्सलाम ने अपने भाइयों के साथ किया था। जाओ तुम सब आज़ाद हो।जिन लोगों ने सालों तक मुसलमानों पर ज़ुल्म किया था उन्हें माफ़ कर दिया गया। यही इस्लाम की असल तालीम है अमन मोहब्बत और इन्साफ़।
हज़रत उमर की इन्साफ़ पसन्दी
जब हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु ने बैतुल मुक़द्दस फतह किया तो वहाँ के ईसाई लोग डरे कि उनके गिरजाघरों को तोड़ दिया जाएगा। मगर हज़रत उमर ने ख़ुद जा कर कहा "तुम्हारी इबादतगाहों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाया जाएगा। उन्होंने ईसाइयों को पूरे हक़ और आज़ादी के साथ रहने दिया। यह अमन और इन्साफ़ की शानदार मिसाल है।
आज के दौर में इस्लाम और अमन
मीडिया का ग़लत प्रोपेगंडा
आज अगर कोई मुसलमान गलती करे तो पूरी दुनिया उसे "दहशतगर्द" कह देती है, मगर अगर कोई दूसरा करे तो कहा जाता है कि "उसे मानसिक परेशानी थी यह दोहरा मापदंड क्यूँ है।
इस्लाम को ग़लत समझने की वजह
लोग आज इस्लाम को किताबों से नहीं बल्कि मीडिया और अफवाहों से समझते हैं। इसलिए ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती जाती हैं।
मुसलमानों को अपनी पहचान ख़ुद बनानी होगी
अगर हमें दुनिया को इस्लाम की असल तसवीर दिखानी है तो हमें ख़ुद अमन, मोहब्बत और इन्साफ़ का नमूना बनना होगा।
इस्लाम अमन और सलामती का मज़हब है
भाइयो और बहनो अगर कोई पूछे कि इस्लाम अमन का मज़हब है या नहीं, तो याद रखिए इस्लाम का नाम ही अमन और सलामती से जुड़ा है। क़ुरआन हमें अमन और इन्साफ़ की तालीम देता है। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरि ज़िंदगी अमन और मोहब्बत से भरी हुई है।
मुसलमानों की तारीख गवाह है कि उन्होंने हमेशा इन्साफ़ किया।
अगर आज भी इस्लाम की सही तालीम पर अमल किया जाए तो दुनिया में हक़ीक़ी अमन क़ायम हो सकता है।
दुआ
अल्लाह हमें इस्लाम के असल पैग़ाम अमन, मोहब्बत और इन्साफ़ को अपनाने और दुनिया तक पहुँचाने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।
सवाल-जवाब
सवाल: क्या इस्लाम तलवार का मज़हब है?
जवाब: नहीं, इस्लाम तलवार का नहीं बल्कि अमन और इंसाफ़ का मज़हब है। इस्लाम ने हमेशा अमन को तरजीह दी है और कुरआन में साफ़ कहा गया है कि अगर दुश्मन सुलह करना चाहे तो मुसलमानों को भी सुलह करनी चाहिए। इस्लाम किसी पर ज़बरदस्ती नहीं करता, बल्कि इंसान को सोचने, समझने और शांति से जीने की तालीम देता है।
सवाल: अगर इस्लाम अमन का मज़हब है तो कुछ लोग हिंसा क्यों करते हैं?
जवाब: हिंसा और दहशतगर्दी का इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। जो लोग इस्लाम का नाम लेकर हिंसा करते हैं, वे इस्लाम की असली तालीम से अनजान हैं। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तो अपने दुश्मनों को भी माफ़ कर दिया था। असली मुसलमान वही है जो दूसरों के लिए अमन और रहमत का ज़रिया बने।
सवाल: क्या इस्लाम सिर्फ मुसलमानों के लिए है?
जवाब: इस्लाम पूरी इंसानियत के लिए है। कुरआन कहता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को "रहमतुल्लिल आलमीन" यानी सारी दुनिया के लिए रहमत बनाकर भेजा गया। इस्लाम हर इंसान की जान, माल, इज़्ज़त और हक़ की हिफ़ाज़त की बात करता है — चाहे वह किसी भी धर्म या कौम से ताल्लुक रखता हो।
सवाल: आज के दौर में मुसलमान इस्लाम की असली तस्वीर कैसे पेश कर सकते हैं?
जवाब: सबसे बेहतरीन तरीका यह है कि मुसलमान अपने आचरण और व्यवहार से इस्लाम की तालीम दिखाएँ। ईमानदारी मोहब्बत सब्र इंसाफ़ और दूसरों की मदद यही असली इस्लामी पहचान है। जब मुसलमान खुद अमन का नमूना बनेंगे तो दुनिया इस्लाम की असल खूबसूरती को पहचानेगी।
