मुसलमान सिर्फ पंचर बनाने वाले? सच्चाई या ग़लतफहमी?
बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिरहीम
आज हम एक ऐसे मसले पर बात करने जा रहे हैं, जो सिर्फ़ एक ताना नहीं, बल्कि पूरी क़ौम के हौसले तोड़ने की एक चाल है। हम अक्सर सुनते हैं कि मुसलमानों को "पंचर बनाने वाला" कहा जाता है, मानो यह उनका मज़ाक उड़ाने का कोई आसान तरीका हो।
लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी मेहनत मशक्कत से की गई रोज़ी कमाना शर्म की बात है? और अगर कुछ मुसलमान सच में पंचर बना रहे हैं, तो इसकी असली वजह क्या है? क्या यह उनकी काहिली (आलस्य) की निशानी है या फिर कुछ और?
आइए, इस मसले को कुरआन, हदीस, इतिहास और आज के हालात की रोशनी में समझते हैं।
रोज़ी कमाना इस्लाम में इज़्ज़त की बात है
इस्लाम में मेहनत और हलाल रोज़ी कमाने को इज़्ज़त की नज़र से देखा गया है, चाहे वह कोई भी काम हो। अल्लाह तआला फरमाता हैं:
"और यह कि इंसान के लिए वही होगा जिसने उसकी कोशिश की।
(सूरह अन-नज्म अ:39)
यानि जो इंसान मेहनत करेगा, वही कामयाब होगा। फिर चाहे वह पंचर बनाए, खेती करे, दुकान चलाए या साइंटिस्ट बने।
नबी-ए-करीम ने भी फरमाया
'सबसे पाक कमाई वह है, जो अपने हाथों से मेहनत करके कमाई जाए।
(मुसनद अहमद)
यानि पंचर बनाने वाला हो, या किसी और पेशे से जुड़ा इंसान अगर वह मेहनत कर रहा है और अपनी रोज़ी हलाल कमा रहा है, तो यह अल्लाह के नज़दीक एक पसंदीदा अमल है।
पंचर बनाने का ताना देने वालों से एक सवाल!
अब सवाल यह उठता है कि अगर कोई मेहनत करके अपनी रोज़ी कमा रहा है, तो इसमें शर्म की क्या बात है?
अगर कोई यह ताना देता है कि 'मुसलमान सिर्फ पंचर बनाते हैं, तो उसे सोचना चाहिए:
अगर एक मुसलमान पंचर बना रहा है, तो वह चोरी नहीं कर रहा।
अगर वह मेहनत से कमाता है, तो वह किसी पर बोझ नहीं।
अगर वह अपनी मेहनत की कमाई से अपने बच्चों को पाल रहा है, तो क्या यह बुरी बात है?
क्या पंचर बनाने से अच्छा बेईमानी करना है?
आज समाज में कई लोग ऐसे हैं, जो झूठ, धोखा और भ्रष्टाचार से पैसा कमाते हैं। लेकिन मुसलमान अगर ईमानदारी से छोटी-मोटी रोज़ी कमा रहा हो, तो उसी का मज़ाक उड़ाया जाता है!
यह कितना बड़ा नाइंसाफ़ी वाला रवैया है!
क्या सारे मुसलमान सिर्फ पंचर बनाते हैं?
अब आइए, इस इल्ज़ाम की सच्चाई को देखें।
अगर दुनिया की बड़ी कंपनियों, यूनिवर्सिटी, साइंस और टेक्नोलॉजी की लिस्ट देखें, तो हमें वहां भी मुसलमान मिलेंगे।
डॉक्टर्स और इंजीनियर्स: भारत, पाकिस्तान और दुनिया के कई हिस्सों में मुसलमान डॉक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट हैं। नासा में, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों में मुसलमान काम कर रहे हैं।
बड़ी मुस्लिम हस्तियाँ:
अब्दुस सलाम - नोबेल प्राइज़ जीतने वाले फिजिक्स के साइंटिस्ट थे।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारत के मिसाइल मैन और राष्ट्रपति ।
मोहम्मद अली - दुनिया के सबसे मशहूर बॉक्सर।
अगर मुसलमान सिर्फ पंचर बना रहे होते, तो क्या ये लोग इतने बड़े मुकाम तक पहुंच पाते?
इतिहास गवाह है - मुसलमान हमेशा लीडर रहे हैं
अगर हम इस्लाम के शुरुआती दौर को देखें, तो मुसलमानों ने हर फील्ड में कमाल किया।
इल्म और साइंस में मुसलमानों की लीडरशिप
इब्ने सीना (Avicenna) - मेडिकल साइंस का बाप कहा जाता है।
इब्रे हैथम - ऑप्टिक्स साइंस का जनक।
अल-ख्वारिज़्मी - जिनकी खोज से आज की कंप्यूटर साइंस वजूद में आई।
मुसलमानों ने दुनिया को लीड किया
जब यूरोप अंधेरे में था, तब मुसलमानों की यूनिवर्सिटी बगदाद, कुर्तुबा और दमिश्क़ में रोशन थीं।
अब सोचिए, अगर मुसलमान सिर्फ पंचर बनाते होते, तो क्या ये सारी तरक्की होती?
मुसलमानों की मौजूदा हालत इसके पीछे कौन ज़िम्मेदार?
अब सवाल यह है कि अगर कुछ मुसलमान आज सिर्फ छोटी-मोटी नौकरियाँ कर रहे हैं, तो इसकी वजह क्या है?
तालीम से दूरी
आज कई मुसलमान इल्म से दूर हो गए हैं। तालीम से दूर हो गए हैं इसके अलावा भी मुसलमानों की तरक्की न करने और आगे ना बढ़ने की बहुत सी वजूहात हैं? लेकिन इसके बावजूद, अगर कोई मेहनत करके रोज़ी कमा रहा है, तो यह शर्म की नहीं, बल्कि फख्र की बात है। और मुसलामानों को तालीम और तरक्की की तरफ़ वापसी करनी चाहिए।
अब मुसलमानों को क्या करना चाहिए?
मुसलमानों को इल्म से आरास्ता करना होगा
अगर हम तालीम हासिल करेंगे, तो कोई हमें छोटा नहीं समझ सकता। हमें साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और बिज़नेस में आगे बढ़ना होगा। हर पेशे को इज़्ज़त देनी चाहिए हर पेशा बराबर होता है चाहे वह डॉक्टर बनना हो या पंचर बनाना। मेहनत की कमाई इज़्ज़त वाली होती है।
अपने बच्चों को बड़ी सोच देना चाहिए
मुसलमानों को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वह सिर्फ़ सर्वाइवल के लिए न जिएँ, बल्कि दुनिया में बड़ा मुकाम हासिल करें।
नतीजा - पंचर बनाना शर्म की बात नहीं, बल्कि इल्म से दूर रहना शर्म की बात है
अगर कोई मुसलमान पंचर बना रहा है, तो वह इज़्ज़त की रोज़ी कमा रहा है। लेकिन मुसलमानों को सिर्फ़ पंचर बनाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें तालीम, कारोबार और टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ना चाहिए।
अगर हम तालीम और तरक्की पर ध्यान देंगे, तो कोई हमें पंचर बनाने वाला कहकर ताना नहीं देगा।
अल्लाह हम सबको हिदायत दे कि हम मेहनत करें, तरक्की करें और दुनिया में फिर से एक मिसाल क़ायम करें।
वाख़िरु दावाना अन्निल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन।