कुरआन के खिलाफ बोलने वालों को जवाब कैसे दें?
अल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन वल आकिबतु लिल मुत्तक़ीन वस्सलातु वस्सलामु अला सय्यदिल मुरसलीन वअला आलिहि वअस्हाबिही अजमईन!
भाइयों और बहनों, आजकल एक अजीब दौर चल रहा है। एक तरफ तो इंसान चांद और सितारों पर पहुंच गया है, और दूसरी तरफ दिलों में नफरत, ज़ुबानों पर ज़हर और जहालत का तूफान है। आज कुछ लोग जान-बूझकर या फिर बिना इल्म के कुरआन के खिलाफ बातें करते हैं। लेकिन सवाल ये है हम इसका जवाब कैसे दें? गुस्से से? झगड़े से? नहीं... हमें जवाब देना है हिकमत, इल्म और सब्र से।
कुरान की हिफाज़त करने वाला खुद अल्लाह है
अल्लाह तआला ने कुरआन के बारे में फरमायाः "बेशक हम ने इस कुरान को नाज़िल किया है और बेशक हम खुद इसकी हिफाज़त करने वाले हैं। (सूरह अल-हिज्रः 9)
यानी कुरआन कों न कोई मिटा सकता है, न बदल सकता है। इसकी हिफाज़त खुद अल्लाह के ज़िम्मे है। जो लोग इसके खिलाफ बोलते हैं, दरअसल वो खुद को नुकसान पहुँचा रहे हैं, क्योंकि कुरआन तो रहनुमा है, और जो इससे दुश्मनी रखे, वो खुद गुमराह हो जाता है।
हमें कैसे जवाब देना है?
कुरआन कहता हैः "अपने रब के रास्ते की तरफ हिकमत और अच्छी नसीहत के साथ बुलाओ और उनसे बहस करो ऐसे तरीके से जो सबसे बेहतर हो।" (सूरह अन-नहलः 125)
देखिए, हमें गालियों का जवाब गालियों से नहीं देना, वरना हम में और उनमें क्या फर्क रह जाएगा? हमें चाहिए कि हम दलील, अच्छाई और अदब से बात करें। ऐसा तरीका अपनाएं जो सामने वाले के दिल तक पहुंचे।
हदीस से सबक़
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को मक्का के लोगों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अज़िय्यतें दीं तकलीफें दीं, लेकिन आपने कभी ज़ुबान से बद्दुआ नहीं दी, बल्कि दुआ दी। जब एक यहूदी आपके पास आया और बदतमीज़ी की, तो आपने सब्र किया और हक़ बात नर्मी से समझाई। यही तरीका हमारा भी होना चाहिए।
वाकिआ उमर (रदीअल्लाहु अन्हु.) का ईमान लाना
हज़रत उमर बिन खत्ताब (रदीअल्लाहु अन्हु) इस्लाम से पहले बहुत सख्त थे। एक दिन जब वो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मारने निकले, तो किसी ने बताया कि पहले अपनी बहन के घर देखो। जब वो वहां पहुंचे, तो बहन कुरआन की तिलावत कर रही थीं। पहले तो उन्होंने मारा, लेकिन फिर जब कुरआन की आयतें सुनीं, तो उनका दिल पसीज गया। वो बोले: "मुझे ये तिलावत सुनाओ।" और वहीं से उनके दिल का हाल बदल गया।
देखिए! कुरआन में इतनी ताक़त है कि जो उसे दिल से सुने, उसका दिल बदल जाता है। तो हमें भी लोगों तक कुरआन को खूबसूरती से पहुँचाना है।
दुनिया की मिसालें
आज बहुत से गैर-मुस्लिम स्कॉलर भी कुरआन की तारीफ करते हैं:
Maurice Bucaille, जो एक मशहूर फ्रेंच साइंटिस्ट थे, उन्होंने "The Bible, the Qur'an and Science" किताब लिखी जिसमें उन्होंने माना कि कुरआन में जो साइंस है, वो अल्लाह की तरफ से ही हो सकती है।
Dr. Keith Moore, जो एम्ब्रायोलॉजी के एक्सपर्ट हैं, उन्होंने भी माना कि कुरआन में जो इंसान की पैदाइश का ज़िक्र है, वो हज़ारों साल पहले कोई नहीं जान सकता था।
यानी अगर कोई खुले दिल से कुरआन को देखे, तो उसे सच नज़र आता है।
हमारा किरदार कैसा हो?
1. इल्म हासिल करें हमें खुद कुरआन को समझना है ताकि जब कोई सवाल करे, तो हम सही जवाब दे सकें।
2. सब्र और नर्मी से जवाब दें कभी भी गुस्से में बहस न करें, क्योंकि गुस्सा दलील को कमजोर कर देता है।
3. सोशल मीडिया पर अदब से लिखें वहां भी जवाब दें, लेकिन जुबान साफ होनी चाहिए। अगर हम भी वही लहजा अपनाएं तो लोग हमसे दूर हो जाएंगे।
4. कुरआन की खूबियां बताएं लोगों को कुरआन की खूबसूरत बातें दिखाएं, जैसे इंसाफ, रहम, पड़ोसियों के हुकूक, और इल्म की अहमियत।
आखरी कलमात
भाइयों और बहनों, कुरआन कोई मामूली किताब नहीं, ये अल्लाह का कलाम है। अगर कोई इसके खिलाफ बोलता है, तो हम उसको दलील से जवाब दें और उस पर अफ़सोस करें के उसने अभी तक हक़ को नहीं जाना। हमारा काम है कि हम इल्म, सब्र और मोहब्बत से लोगों को हक़ दिखाएं।
दुआ है कि अल्लाह हमें अपने कलाम से मोहब्बत करने, उसे समझने, उस पर अमल करने और दुनिया तक उसकी हकीकत पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए। आमीन!