इंसाफ पसंद और रहम दिल कौम है मुस्लमान

मुसलमान हर साल अरबों डॉलर की ज़कात देते हैं जिससे ग़रीबों बेसहारा लोगों अनाथ बच्चों और मज़लूमों की मदद होती है। यह भी रहम दिल कौम की निशानी है।

अल्लाह के नाम से शुरू जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है आज हम एक ऐसी सच्चाई पर बात करने जा रहे हैं जो दुनिया में मुसलमानों की असली पहचान है रहमदिली और इन्साफ़। मुसलमानों को आज अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है कभी उन्हें शदीद (कट्टर) कहा जाता है कभी ज़ालिम और कभी जिहादी। लेकिन क्या सच में ऐसा है? क्या इस्लाम किसी पर ज़ुल्म करने की तालीम देता है? क्या मुसलमानों की असली पहचान रहमदिली और इन्साफ़ नहीं है?

आज हम कुरआन हदीस तारीख़ और  मिसालों से साबित करेंगे कि मुसलमान हमेशा से रहमदिल और इन्साफ़ पसन्द क़ौम रहे हैं।

इस्लाम रहम और इन्साफ़ का मज़हब

इस्लाम की बुनियाद ही रहमदिली और इन्साफ़ पर रखी गई है। अल्लाह तआला फ़रमाता है: हमने तुम्हें सारे जहाँ के लिए रहमत बनाकर भेजा। (सूरह अल-अंबिया: 107) यानि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पूरी इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए। वह सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि तमाम इंसानों जानवरों पेड़ों पौधों यहाँ तक कि पूरी कायनात के लिए रहमदिली और इन्साफ़ की मिसाल थे।

नबी पाक की रहमदिली

ताइफ़ का वाक़िआ जब ताइफ़ के लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पत्थर बरसाए उन्हें ज़ख्मी कर दिया उनका ख़ून बहाया तो फ़रिश्ता आकर बोला “अगर आप कहें तो इन लोगों पर पहाड़ गिरा दूँ? लेकिन हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क्या जवाब दिया? “नहीं! मैं दुआ करता हूँ कि अल्लाह इनकी नस्लों से ऐसे लोग पैदा करे जो इस्लाम को क़बूल करें। क्या यह इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल नहीं? आज अगर कोई हम पर पत्थर फेंक दे तो हमारा पहला रद्द ए अमल क्या होता है? लेकिन हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बदला लेने के बजाय रहमदिली दिखाई।

मक्का की फ़तह इन्साफ़ और माफ़ी की बेहतरीन मिसाल

जब मुसलमानों ने मक्का फ़तह किया तो सोचिए उस वक़्त नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन तमाम लोगों से बदला ले सकते थे जिन्होंने सालों तक मुसलमानों पर ज़ुल्म किए थे। लेकिन उन्होंने क्या किया? उन्होंने फ़रमाया:“आज तुम्हारे साथ वैसा ही सलूक होगा जैसा यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने अपने भाइयों के साथ किया था। जाओ सबको माफ़ किया!”क्या ऐसी रहमदिली कहीं और दिखाई जा सकती है? यह तो रहमदिली और इन्साफ़ की सबसे बड़ी मिसाल है।

मुसलमानों की इन्साफ़ पसन्दी की मिसालें

हज़रत उमर का इन्साफ़ हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़िअल्लाहु अन्हु) के दौर में एक यहूदी और मुसलमान के बीच झगड़ा हुआ। जब मामला उनके सामने आया तो उन्होंने हक़ की गवाही यहूदी के हक़ में दी क्योंकि वही सही था।

सोचिए आज हम में से कितने लोग ऐसे हैं जो अपने दुश्मन के हक़ में भी इन्साफ़ कर सकते हैं? यही इस्लाम की सिखाई हुई सच्ची इन्साफ़ पसन्दी है।

सलाहुद्दीन अय्यूबी इन्साफ़ की पहचान

जब सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैतुल मुक़द्दस (जेरूसलम) फ़तह किया, तो उन्होंने ईसाइयों और यहूदियों को पूरी आज़ादी दी। जबकि जब ईसाइयों ने बैतुल मुक़द्दस फ़तह किया था तो उन्होंने लाखों मुसलमानों को क़त्ल कर दिया था। फिर भी मुसलमानों ने बदले में इन्साफ़ और रहमदिली का मुज़ाहिरा किया।

आज के दौर में मुसलमानों की रहमदिली

कुछ लोग कहते हैं कि यह तो पुरानी बातें हैं। लेकिन क्या आज के दौर में मुसलमान रहमदिल और इन्साफ़ पसन्द नहीं हैं? अगर हम देखें तो दुनिया के सबसे ज़्यादा चैरिटी करने वाले लोग मुसलमान हैं।

ज़कात और सदक़ा

मुसलमान हर साल अरबों डॉलर की ज़कात देते हैं जिससे ग़रीबों बेसहारा लोगों अनाथ बच्चों और मज़लूमों की मदद होती है।

कोरोना महामारी में मुसलमानों की मदद

जब कोरोना आया तो पूरी दुनिया के मुसलमानों ने इन्साफ़ और रहमदिली की मिसाल क़ायम की। मस्जिदों के दरवाज़े खोल दिए गए , मुफ़्त ऑक्सीजन और दवाइयाँ बाँटी गईं, और बिना भेदभाव के हर मज़हब के लोगों की मदद की गई। क्या यह किसी ज़ालिम क़ौम की निशानी है? नहीं।

मुसलमानों के ख़िलाफ़ झूठा प्रोपेगंडा क्यों?

अगर मुसलमान इतनी इन्साफ़ पसन्द और रहमदिल क़ौम हैं तो फिर उनके ख़िलाफ़ इतनी नफ़रत क्यों फैलाई जाती है? ताकि मुसलमान अपने असली किरदार से भटक जाएँ। ताकि उन्हें ग़लत ठहराकर दुनिया में अलग-थलग किया जा सके। ताकि वे तालीम तरक़्क़ी और इन्साफ़ से दूर हो जाएँ। लेकिन हमें समझना होगा कि दुनिया कुछ भी कहे,हमें कुरआन और सुन्नत के मुताबिक़ ही रहना है।

मुसलमानों को अपने असल किरदार पर वापस आना होगा

भाइयो और बहनो! मुसलमानों की असली पहचान रहमदिली और इन्साफ़ है। हमें अपनी इस पहचान को बरक़रार रखना होगा। हमेशा इन्साफ़ करें चाहे अपने ख़िलाफ़ ही क्यों न हो। हर इंसान से भलाई और रहमदिली का बर्ताव करें। दुश्मनों तक के साथ इन्साफ़ से पेश आएँ। अगर हम इस्लाम की असली तालीमात पर चलेंगे तो दुनिया हमें फिर से इन्साफ़ और रहमदिली की क़ौम मानेगी।

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islami Aaina
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